यूँ दीप जल मेरे निरंतर, तमस का संहार हो,
लौ जला आगे बढ़ा जिस पथ से भी प्रतिकार हो।
तू ही नयन की आस बन, उम्मीद की किरणें दिखा,
तू ही प्रबल विश्वास बन, कीर्ति भूषित रथ सजा।
तू बन खड़ा हो सारथी, जिस पल अगम जीवन लगे,
सबको प्रकाशित पथ दिखा, जब सत्य भी डिगता दिखे।
तू रश्मियों का रूप धर, नव उषा का संचार कर,
अविराम तू ये रथ बढ़ा, चाहे पथिक थकता दिखे।
ज्योति तू ऐसी जला, अनल बन शोणित जले,
तड़ित बनकर तू चमक, जब तिमिर की माया दिखे।
तू ही अभय वरदान बन, हर शाप का मोचन करा,
पतवार बन मंझधार में, यात्रा सुलभ सबकी बना।
सारे पथिक अनुचर तेरे, तुझसे ही संबल ले बढ़े,
निर्बाध जल दीपक मेरे, तेरे ही बल पर सब खड़े।
ऐ आंधियां पवमान सुन, ऐ प्रबल झंझावात सुन,
दारुण दनुज सब गात्र सुन, ऐ सृष्टियाँ नवराग सुन।
मेरा वरण अभिजात्य सुन, हठयोग का अनुराग सुन,
सबमें समाहित प्राण सुन, मेरा अलौकिक राग सुन।
जो जल रहा-दीपक यहां उसमें बहा शोणित मेरा,
उस लहू की पुकार सुन, नेपथ्य की आवाज़ सुन।
सज चुका आकाश है, न बुझ सके, वो प्रकाश है,
आ रहा नवप्रभात है, मेरा अटल विश्वास है-2।
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Kumar Manvendra